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राजभाषा ही राष्ट्र की प्रगति का प्रवाह है

भारती व यूरोपीय भाषाओं का हम वैज्ञानिक अध्ययन करें तो,हम पाएंगे कि यूरोपीय कुल की भाषाओं को बोलने वाले व भारतीय कुल की भाषाओं को बोलने वालों किसी न किसी युग में एक ही स्थान पर रहे होंगे। भाषा किसी भी प्राणी सशक्त माध्यम भर नही हैं संसार के सभी प्राणी अपने भाषाओं की अभिव्यक्ति किसी न किसी भाषा के के माध्यम से करते हैं।मनुष्य अपने भावों को बोलकर या लिखकर प्रकट करता है,भाषा केवल कानों का ही नहीं,अपितु आंखों का भी विषय है भाषा मनुष्य के शिक्षा एवं ज्ञान का प्रमुख आधार है । भाषा के द्वारा ही मनुष्य के शारीरिक बौद्धिक व व्यक्तित्व का विकास होता है । भाषा कोई पैतृक संपत्ति नहीं है भाषा एक अर्जित संपत्ति है । हिंदी हिंदू हिंदुस्तान यह सब शब्द संस्कृत के नहीं है, हिंदी भाषा का जन्म उत्तर भारत में हुआ पर इसका नामकरण ईरानियों तथा भारत के मुसलमानों के द्वारा किया गया । वस्तुत हिंदी किसी संप्रदाय या धर्म की भाषा नहीं है इसपर सबका बराबर का अधिकार है l किसी भाषा का साहित्य अपने समाज का अंग ही नहीं वरन उसका स्मारक है । क्योंकि इतिहास और समाज के बदल जाने पर भी स्मारक नहीं बदला करते । जहां साहित्य उदांत संस्कृत का घोतक है व मानवता की निधि है । वही भाषा जीवन की एक दिशा है, क्योंकि जीवन ही भाषा की व्याप्ति है । कोई एक बोली पठन-पाठन पत्र व्यवहार और साहित्य रचना के क्षेत्र में स्वीकृत होकर विभाषा का पद प्राप्त करती है,और आपस में संबंध रखने वाली कई भाषाओं के क्षेत्र में शिष्ट लोक व्यवहार के व्याकरण सम्मत परीनिस्ठित रूप को प्राप्त कर भाषा का पद प्राप्त करती हैं। तब उनकी उन्नति का यह क्रम यही ठहर नहीं जाता राजनीति परिस्थितियों व ऐतिहासिक कारणों से वह भाषा पूरे देश अथवा राष्ट्रीय भाषा क्षेत्र और अन्य भाषा परिवार क्षेत्र सार्वजनिक कार्य के उपयोग में आकर राष्ट्रभाषा की संज्ञा प्राप्त कर लेती हैं । राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है, राजकाज की भाषा अतः जो भाषा देश की राज्य कार्यों के लिए उपयुक्त होती है व राजभाषा कहलाती है । स्वशासन के लिए राजभाषा की आवश्यकता होती है। राष्ट्रभाषा ही स्वशासन आने के पश्चात राजभाषा बन जाती है। भारत में ही स्वतंत्रता के पश्चात राष्ट्रभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ हैं । किंतु अहिंदीभाषी लोगों द्वारा हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिए जाने का प्रबल विरोध किया गया यही वजह थी कि 21 सितंबर 1949 ईस्वी से 14 सितंबर 1949 ईसवी तक हुई हिंदी अंग्रेजी संस्कृत एवं हिंदुस्तानी भाषाओं पर विचार किया गया । किंतु संविधान सभा के भीतरी और बाहरी हिंदीभाषी के विपुल समर्थकों को देखकर संविधान सभा की नियम समिति ने हिंदी के पक्ष में अपना निर्णय दिया । हिंदीविरोधी एवं हिंदीसमर्थकों के बीच मुंशी-आयंगर फार्मूले के द्वारा समझौते के परिणाम स्वरूप 14 सितंबर 1949 को हिंदी को संवैधानिक रूप से राजभाषा घोषित किया गया। इसी उपलक्ष में 14सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। यद्यपि राष्ट्र उक्त अवधि के दौरान संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए हिंदी भाषा के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा का भी और भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग अधिकृत कर सकेगा । हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी के विरोध तथा शासन की गतिशीलता को बनाए रखने के लिए किया गया था। साथ ही संसद को यह अधिकार भी प्रदान किया गया था,कि वह संघ की राजभाषा के रूप में अंग्रेजी के प्रयोग की अवधि को 1965 से आगे भी बढ़ा सकती है । संसद में इस शक्ति का प्रयोग करते हुए राजभाषा अधिनियम 1963 पारित कर यह प्रावधान किया कि 26 जनवरी 1965 से हिंदी संघ की राजभाषा तो रहेगी,परंतु हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी संघ के सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का बराबर प्रयोग होता ररहेगा। तत्पश्चात राजभाषा संशोधन अधिनियम 1967 द्वारा इस प्रावधान में संशोधन किया गया कि अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त करने के लिए ऐसे सभी राज्यों के विधान मंडल जिन्होंने हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, संकल्प पारित करना होगा और विधान मंडलों के संकल्प पर विचार कर लेने के पश्चात उसकी समाप्ति के लिए संसद के हर एक सदन द्वारा ,संकल्प पारित करना होगा ऐसा नहीं होने पर अंग्रेजी संघ की राजभाषा के रूप में अनिश्चितकाल तक बनी रह सकती है । अगर भारत का एक भी हिंदी भाषी राज्य चाहेगा कि अंग्रेजी बनी रहे तो वह सारे देश की सहायक राजभाषा बनी रहेगी । उल्लेखनीय है कि संघ की राजभाषा हिंदी इस समय 9 राज्यों बिहार झारखंड राजस्थान हरियाणा व हिमाचल प्रदेश तथा केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की सभी राजभाषा है इसके अतिरिक्त अहिंदी भाषी राज्यों गुजरात महाराष्ट्र व पंजाब के राज्य केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ अंडमान निकोबार की सरकारों ने हिंदी को द्वितीय राजभाषा घोषित कर रखा है। ज्ञातव्य है कि मेघालय मिजोरम तथा नागालैंड की राजभाषा अंग्रेजी है । संविधान के अनुच्छेद 351 में भाषा के विकास में कहा गया कि सरकार भाषा के विकास और प्रसार के लिए समुचित प्रयास करें ताकि भारत में राजभाषा हिंदी के ऐसे स्वरूप का विकास हो जो समूचे देश में प्रयुक्त हो सके, और जो भारत की सामाजिक सांस्कृतिक मिली-जुली संस्कृति की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके इसके साथ ही संघ का यह भी कर्तव्य है की हिंदी में हिंदुस्तानी और अन्य भारतीय भाषाओं के उपर्युक्त द्रुपद और शैली को अपनाते हुए शब्द भंडार के लिए मुख्य संस्कृत और अन्य भाषाओं के शब्द ग्रहण करते हुए उनकी समृद्धि सुनिश्चित करें । पर क्या संघ ऐसा कर पाया ? क्योंकि आज भी भारत में राज्यों का बंटवारा भाषा के आधार पर किया जाता है l

टिप्पणियाँ

Prashant Kumar ने कहा…
अद्भुत अद्वितीय अविस्मरणीय
Prashant Kumar ने कहा…
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Prashant Kumar ने कहा…
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